आदमी पेड़ और मकान
साफ़ नीला आसमान
संग-रेज़े और गुलाब
सब के सब अच्छे लगे
उस के घर जाते हुए
Allama Iqbal
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
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पानी का हाथ
मैं तुम्हें याद कर रहा था
सुब्ह के शहर में इक शोर है शादाबी का
मैं आग देखता था आग से जुदा कर के
इतने बहुत से रंग
जंगल में कभी जो घर बनाऊँ
सियाही फेरती जाती हैं रातें बहर ओ बर पे
मैं किताब-ए-ख़ाक खोलूँ तो खुले
मैं जो गुज़रा सलाम करने लगा
ले आएगा इक रोज़ गुल ओ बर्ग भी 'सरवत'
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
दिन और झाग