बहता हुआ पानी
पेड़ों के माथे को
चूम गए बादल
शाख़ों से टकराएँ
हात
कच्चे फलों की
ख़ुशबू जगाए
सूरज की बाँहों में
....रात
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मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में
यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना
ले आएगा इक रोज़ गुल ओ बर्ग भी 'सरवत'
पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर
थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से
गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा
एक पुल बनाया जा रहा है
पहनाए-बर-ओ-बहर के महशर से निकल कर
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ी
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
आश्नाई का फ़रिश्ता
पत्थरों में आइना मौजूद है