आश्नाई के फ़रिश्ते
उन ज़मीनों का पता दे
जो मिरी मानिंद तन्हा
हिज्र का दुख सह रही हैं
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वहीं पर मिरा सीम-तन भी तो है
शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तक
घर से निकला तो मुलाक़ात हुई पानी से
जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में
दरख़्त मेरे दोस्त
नींद का फ़रिश्ता
मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते
''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''
विसाल
जंगल में कभी जो घर बनाऊँ