ये होंट तिरे रेशम ऐसे
खुलते हैं शगूफ़े कम ऐसे
ये बाग़ चराग़ सी तन्हाई
ये साथ गुल ओ शबनम ऐसे
मिरी धूप में आने से पहले
कभी देखे थे मौसम ऐसे
किस फ़स्ल में कब यकजा होंगे
सामान हुए हैं बहम ऐसे
सीने में आग जहन्नम सी
और झोंके बाग़-ए-इरम ऐसे
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दरख़्त मेरे दोस्त
सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैं
वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से
सियाही फेरती जाती हैं रातें बहर ओ बर पे
मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में
इक रोज़ मैं भी बाग़-ए-अदन को निकल गया
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
क़िन्दील-ए-मह-ओ-मेहर का अफ़्लाक पे होना
सितारे का गुमान