वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
निगार ख़ाना-ए-अब्र-ओ-हवा बदलने लगा
तह-ए-ज़मीन किसी अज़दहे ने जुम्बिश की
बिसात-ए-ख़ाक पे मंज़र मिरा बदलने लगा
ये कौन उतरा पए-गश्त अपनी मसनद से
और इंतिज़ाम-ए-मकान ओ सिरा बदलने लगा
हुआ है कौन नुमूदार तीन सम्तों से
कि अंदरूँ का जज़ीरा-नुमा बदलने लगा
ये कैसे दिन हैं हमारी ज़मीन पर 'सरवत'
गुलों का रंग नमक का मज़ा बदलने लगा
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