सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में
सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में
इश्क़ करता हूँ इसी बे-सर-ओ-सामानी में
सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैं
मैं ने कश्ती को उतारा है उसी पानी में
सूफ़िया, तुम से मुलाक़ात करूँगा इक रोज़
किसी सय्यारे की जलती हुई उर्यानी में
मैं ने अंगूर की बेलों में तुझे चूम लिया
कर दिया और इज़ाफ़ा तिरी हैरानी में
कितना पुर-शोर है जिस्मों का अँधेरा 'सरवत'
गुफ़्तुगू ख़त्म हुई जाती है जौलानी में
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