सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है
सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है
हवाएँ कहती हैं उस पार इक समुंदर है
मैं एक लहर हूँ अपने मकान में और फिर
हुजूम-ए-कूचा-ओ-बाज़ार इक समुंदर है
ये मेरा दिल है मिरा आईना है शहज़ादी
और आईने में गिरफ़्तार इक समुंदर है
कहाँ वो पैरहन-ए-सुर्ख़ और कहाँ वो बदन
कि अक्स-ए-माह से बेदार इक समुंदर है
ये इंतिहा-ए-मसर्रत का शहर है 'सरवत'
यहाँ तो हर दर-ओ-दीवार इक समुंदर है
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