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सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है - सरवत हुसैन कविता - Darsaal

सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है

सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है

हवाएँ कहती हैं उस पार इक समुंदर है

मैं एक लहर हूँ अपने मकान में और फिर

हुजूम-ए-कूचा-ओ-बाज़ार इक समुंदर है

ये मेरा दिल है मिरा आईना है शहज़ादी

और आईने में गिरफ़्तार इक समुंदर है

कहाँ वो पैरहन-ए-सुर्ख़ और कहाँ वो बदन

कि अक्स-ए-माह से बेदार इक समुंदर है

ये इंतिहा-ए-मसर्रत का शहर है 'सरवत'

यहाँ तो हर दर-ओ-दीवार इक समुंदर है

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In Hindi By Famous Poet Sarvat Husain. is written by Sarvat Husain. Complete Poem in Hindi by Sarvat Husain. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.