फिर वो बरसात ध्यान में आई
तब कहीं जान जान में आई
फूल पानी में गिर पड़े सारे
अच्छी जुम्बिश चटान में आई
रौशनी का अता-पता लेने
शब-ए-तीरा जहान में आई
रक़्स-ए-सय्यार्गां की मंज़िल भी
सफ़र-ए-ख़ाक-दान में आई
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गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा
इक दास्तान अब भी सुनाते हैं फ़र्श ओ बाम
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए
दस से ऊपर
आँखों में सौग़ात समेटे अपने घर आते हैं
नज़्म
थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से
नई नई सी आग है या फिर कौन है वो
लहर-लहर आवारगियों के साथ रहा
सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
रात ढलने के ब'अद क्या होगा