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मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते - सरवत हुसैन कविता - Darsaal

मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते

मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते

हम भी अपने ख़िश्त-ज़ारों के लिए आसूदगी का बाब होते

शहर-ए-आज़ुर्दा-फ़ज़ा में आबगीनों को ब-रू-ए-कार लाते

शाम की इन ख़ानुमाँ वीरानियों में सोहबत-ए-अहबाब होते

ताज़ा ओ ग़मनाक रखते आस और उम्मीद की सब कोंपलों को

और फिर हमराही-ए-बाद-ए-शबाना के लिए महताब होते

ख़ुद-कलामी के भँवर में डूबती परछाईं बन कर रह गए हैं

इस अँधेरी रात में घर से निकलते तो सितारा-याब होते

ख़ाक-आलूदा ज़मानों पर बरसती झूमती काली घटाएँ

मौसमों की आब-ओ-ख़ाक-आराइयों से आइने सैराब होते

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In Hindi By Famous Poet Sarvat Husain. is written by Sarvat Husain. Complete Poem in Hindi by Sarvat Husain. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.