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गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह - सरवत हुसैन कविता - Darsaal

गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह

गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह

और ये अपना मकाँ ख़ूब है अपनी जगह

ऐ दिल-ए-आशुफ़्ता-सर रात अँधेरी है पर

रक़्स तिरा शम्अ-साँ ख़ूब है अपनी जगह

काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा तेरी हिकायत ही क्या

फिर भी तमाशा-ए-जाँ ख़ूब है अपनी जगह

हिज्र-नज़ादों का है एक अलग ही जहाँ

उस से न मिलना यहाँ ख़ूब है अपनी जगह

सैर-ए-बयाबाँ-ओ-दर उक़्दा-कुशा नीज़

रंज-ए-मसाफ़त मियाँ ख़ूब है अपनी जगह

चेहरा-ए-बिल्क़ीस पर आँख ठहरती नहीं

सुब्ह-ए-यमन का समाँ ख़ूब है अपनी जगह

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In Hindi By Famous Poet Sarvat Husain. is written by Sarvat Husain. Complete Poem in Hindi by Sarvat Husain. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.