दिल को नशात-ए-ग़म से हूँ शादाँ किए हुए
दिल को नशात-ए-ग़म से हूँ शादाँ किए हुए
मुझ पर फ़िराक़-ए-याद है एहसाँ किए हुए
आहें बता रही हैं कि देरीना चोट है
चेहरा है दिल के रंज को उर्यां किए हुए
जैसे ख़िज़ाँ-रसीदा कोई बर्ग-ए-दश्त में
फिरते हैं दिल में दर्द को पिन्हाँ किए हुए
शाहिद हैं सोज़-ए-क़ल्ब के क़तरात अश्क-ए-ग़म
पलकों पे हैं चराग़-ए-फ़रोज़ाँ किए हुए
आई है फिर बहार जुनूँ को मिली है शह
मुद्दत हुई थी चाक गरेबाँ किए हुए
यादों के गुल खिले हैं तसव्वुर में आज फिर
हम आ है हैं सैर-ए-गुलिस्ताँ किए हुए
इंसानियत का क़हत है 'सरताज' आज-कल
मुद्दत हुई ज़ियारत-ए-इंसाँ किए हुए
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