आईना-ए-हयात पे छाया ग़ुबार है
आईना-ए-हयात पे छाया ग़ुबार है
जिस की तरफ़ उठाएँ नज़र दिल-फ़िगार है
तस्वीर तेरी अहद-ए-हसीं का है एक नक़्श
जो मेरे शहर-ए-दिल में तिरी यादगार है
तेरी शराब-पाश-निगाहों के फ़ैज़ से
अब बे-पिए ही मुझ को सुरूर-ओ-ख़ुमार है
ख़ुश्बू तुम्हारी ढूँढती फिरती रही हमें
पहुँची वहीं जहाँ पे हमारा मज़ार है
चाहो जो तुम न मुझ से ख़फ़ा हो कभी बहार
दुनिया-ए-रंग-ओ-बू पे तुम्हें इख़्तियार है
आ जाओ तुम बहार की तकमील के लिए
मौसम है दिल-फ़रेब फ़ज़ा साज़गार है
'सरताज' क़स्र-ए-ज़ीस्त इमारत अजीब है
ने गोशा-ए-पनाह न राह-ए-फ़रार है
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