Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_8cd5811034831c8dfba8cf382bff413f, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
अब मौत से बचाए कहाँ ज़ीस्त क्या मजाल - सरशार बुलंदशहरी कविता - Darsaal

अब मौत से बचाए कहाँ ज़ीस्त क्या मजाल

अब मौत से बचाए कहाँ ज़ीस्त क्या मजाल

फैले हुए हैं जिस्म में नीली रगों के जाल

यूँ तो नहीं कि उम्र गँवाई है धूप में

फबती सी कस रहे हैं ये सर के सफ़ेद बाल

मोहलत किसे मिले है यहाँ लब-कुशाई की

आँखों में नाच नाच के थकते रहे सवाल

मल्बूस तो बदन से कभी का उतर चुका

तब लुत्फ़ आए जिस्म से खिंच जाए और खाल

'सरशार' आओ देखें तो ये कौन शख़्स है

इक हाथ में किताब है इक हाथ में कुदाल

(382) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sarshaar Buland Shahri. is written by Sarshaar Buland Shahri. Complete Poem in Hindi by Sarshaar Buland Shahri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.