सब की अपनी मंज़िलें थीं सब के अपने रास्ते
एक आवारा फिरे हम दर-ब-दर सब से अलग
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
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एक वजूदी दोस्त के नाम
कौन है किस ने पुकारा है सदा कैसे हुई
महबूबा के लिए आख़िरी नज़्म
बे-दिली में भी दिल बड़ा रखना
किस शख़्स की तलाश में सर फोड़ती रही
रौशनी रंगों में सिमटा हुआ धोका ही न हो
हमारे लिए सुब्ह के होंट पर बद-दुआ' है
उस के मिलने पे भी महसूस हुआ है 'सरमद'
ढोल का पोल
हाँ मेरी महबूबा
पल भर का बहिश्त
इस्तिआरे ढूँडता रहता हूँ