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मिल-जुल कर ईमान ख़ुदा पर ला सकते हैं - सरफ़राज़ ज़ाहिद कविता - Darsaal

मिल-जुल कर ईमान ख़ुदा पर ला सकते हैं

मिल-जुल कर ईमान ख़ुदा पर ला सकते हैं

इक जन्नत में भूक और प्यास समा सकते हैं

आप अगर समझा दें ख़ाल-ओ-ख़द मंज़र के

हम अपनी हैरत का नाम बता सकते हैं

मेरे खलियानों से उठते आग के शोले

झोंके तेरे बाग़ों तक फैला सकते हैं

कमरे के दम घुट जाने का ख़ौफ़ न हो तो

हम अपनी तन्हाई को दोहरा सकते हैं

नींद उड़ा सकते हैं दुश्मन के लश्कर की

मलिका के ख़्वाबों से फूल चुरा सकते हैं

आप अगर पलकों की चौखट तक आ जाएँ

हम अपनी तस्वीर से बाहर आ सकते हैं

लम्हा इतनी गुंजाइश रखता है ख़ुद में

आप इस में आने से पहले जा सकते हैं

हम बेचैन खिलौने इक दिन मूड में आ कर

जिस्मों के शो-केस से बाहर आ सकते हैं

कर सकते हैं दरिया को इक मिसरे में क़ैद

और सहरा को घर की राह दिखा सकते हैं

पलकों की दर्ज़ों से झाँकने वाले इक दिन

रुख़्सारों पर आ कर शोर मचा सकते हैं

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In Hindi By Famous Poet Sarfraz Zahid. is written by Sarfraz Zahid. Complete Poem in Hindi by Sarfraz Zahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.