Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_c750867dc5ae2901e7ccf09f3a754d77, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ख़ुद से अपना आप मिलाया जा सकता है - सरफ़राज़ ज़ाहिद कविता - Darsaal

ख़ुद से अपना आप मिलाया जा सकता है

ख़ुद से अपना आप मिलाया जा सकता है

तन्हाई का हाथ बटाया जा सकता है

ख़ामोशी जब हमला-आवर होना चाहे

चौराहे पर शोर मचाया जा सकता है

हैरानी का क़र्ज़ चुकाना पड़ जाए तो

आँखों का एहसान उठाया जा सकता है

धरती पर कुछ सब्ज़ रुतों का भेस बदल कर

चरवाहे का ख़्वाब चुराया जा सकता है

उन की तीरा ज़ुल्फ़ों से तश्बीहें दे कर

शब को राह-ए-रास्त पे लाया जा सकता है

ना-मुम्किन है पानी पर तस्वीर बनाना

लेकिन उस पर शेर बनाया जा सकता है

भूला जा सकता है ख़ुद को बरसों बरसों

रोज़ किसी को याद भी आया जा सकता है

(607) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sarfraz Zahid. is written by Sarfraz Zahid. Complete Poem in Hindi by Sarfraz Zahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.