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हवा चलती है दम ठहरा हुआ है - सरफ़राज़ ज़ाहिद कविता - Darsaal

हवा चलती है दम ठहरा हुआ है

हवा चलती है दम ठहरा हुआ है

फ़ज़ा में किस का ग़म ठहरा हुआ है

तसव्वुर में उभरते ख़ाल-ओ-ख़द पर

मुसव्विर का क़लम ठहरा हुआ है

उसी को अपनी मंज़िल कह रहा है

जहाँ जिस का क़दम ठहरा हुआ है

समाअ'त के जज़ीरों में कहीं पर

तिरे लहजे का रम ठहरा हुआ है

ज़रा ठहरो कि चलती है अभी साँस

चले आओ कि दम ठहरा हुआ है

मिरे ख़्वाबों के रुख़्सारों पे अब तक

किसी बोसे का नम ठहरा हुआ है

ख़ुदा भी है उसी कूचे का बासी

जहाँ मेरा सनम ठहरा हुआ है

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In Hindi By Famous Poet Sarfraz Zahid. is written by Sarfraz Zahid. Complete Poem in Hindi by Sarfraz Zahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.