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ग़फ़लतों का समर उठाता हूँ - सरफ़राज़ ज़ाहिद कविता - Darsaal

ग़फ़लतों का समर उठाता हूँ

ग़फ़लतों का समर उठाता हूँ

रोज़ ताज़ा ख़बर उठाता हूँ

बात बढ़ती है तूल देने से

सो इसे मुख़्तसर उठाता हूँ

हो के बाशिंदा इक सितारे का

उँगलियाँ चाँद पर उठाता हूँ

चूमते हैं जिसे उठा कर लोग

मैं उसे चूम कर उठाता हूँ

अब कहाँ आसमान छूने को

ज़हमत-ए-बाल-ओ-पर उठाता हूँ

सू-ए-मंज़िल में हर क़दम अपना

इक फ़लक छोड़ कर उठाता हूँ

वार करती है जब पलट कर मौज

एहतियातन भँवर उठाता हूँ

अपनी मफ़्तूहा सर-ज़मीनों पर

पाँव रखता हूँ सर उठाता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Sarfraz Zahid. is written by Sarfraz Zahid. Complete Poem in Hindi by Sarfraz Zahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.