सफ़र कहाँ से कहाँ तक पहुँच गया मेरा
रुके जो पाँव तो काँधों पे जा रहा हूँ मैं
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ख़ुदा करे कि वही बात उस के दिल में हो
दिए निगाहों के अपनी बुझाए बैठा हूँ
बदन-सराए में ठहरा हुआ मुसाफ़िर हूँ
बे-सदा सी किसी आवाज़ के पीछे पीछे
लड़खड़ाता हूँ कभी ख़ुद ही सँभल जाता हूँ
वो कोई आम सा ही जुमला था
किसे ख़बर थी कि इस को भी टूट जाना था
तिरे ख़ुलूस के क़िस्से सुना रहा हूँ मैं
नज़र भी आया तो ख़ुद से छुपा लिया मैं ने
इश्क़ अदब है तो अपने आप आए
कितना दुश्वार है इक लम्हा भी अपना होना