मिरे बग़ैर कोई तुम को ढूँडता कैसे
तुम्हें पता है तुम्हारा पता रहा हूँ मैं
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(489) Peoples Rate This
इश्क़ अदब है तो अपने आप आए
एक रस्ते की कहानी जो सुनी पानी से
कितना दुश्वार है इक लम्हा भी अपना होना
मौसमों वाले नए दाना ओ पानी वाले
ये मैं ने माना कि पहरा है सख़्त रातों का
आईना चुपके से मंज़र वो चुरा लेता है
तुम्हारे सच की हिफ़ाज़त में यूँ हुआ अक्सर
हम अपने शहर से हो कर उदास आए थे
नज़र भी आया तो ख़ुद से छुपा लिया मैं ने
दिए निगाहों के अपनी बुझाए बैठा हूँ
बला से नाम वो मेरा उछाल देता है