वो भी न आया उम्र-ए-गुज़िश्ता के मिस्ल ही
हम भी खड़े रहे दर-ओ-दीवार की तरह
Wasi Shah
Parveen Shakir
Jaun Eliya
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Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
अजीब फ़ुर्सत-ए-आवारगी मिली है मुझे
तुम थे तो हर इक दर्द तुम्हीं से था इबारत
दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
ज़ीस्त की यकसानियत से तंग आ जाते हैं सब
मैं तो अब शहर में हूँ और कोई रात गए