उसी के ख़्वाब थे सारे उसी को सौंप दिए
सो वो भी जीत गया और मैं भी हारा नहीं
Anwar Masood
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Javed Akhtar
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(557) Peoples Rate This
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
मैं अपने-आप से आगे निकल गया हूँ बहुत
तुम थे तो हर इक दर्द तुम्हीं से था इबारत
हमारे काँधे पे इस बार सिर्फ़ आँखें हैं
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
वो भी न आया उम्र-ए-गुज़िश्ता के मिस्ल ही
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
मैं जिस को सोचता रहता हूँ क्या है वो आख़िर
न चाँद का न सितारों न आफ़्ताब का है
मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं