उस से कह दो कि मुझे उस से नहीं मिलना है
वो है मसरूफ़ तो बे-कार नहीं हूँ मैं भी
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एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
तेरे होने से भी अब कुछ नहीं होने वाला
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
नज़्म
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर
बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं
इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद
अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
देर तक जागते रहने का सबब याद आया