सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
क़रीब आ मिरी आँखों के ख़्वाब, ज़िंदा हूँ
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ये काएनात भी क्या क़ैद-ख़ाना है कोई
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
ताबिश-ए-गेसू-ए-ख़मदार लिए फिरता है
शरीक वो भी रहा काविश-ए-मोहब्बत में
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
न चाँद का न सितारों न आफ़्ताब का है
मैं अपने-आप से आगे निकल गया हूँ बहुत
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
तमाम उम्र ब-क़ैद-ए-सफ़र रहा हूँ मैं
अजीब फ़ुर्सत-ए-आवारगी मिली है मुझे
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद