रौनक़-ए-बज़्म नहीं था कोई तुझ से पहले
रौनक़-ए-बज़्म तिरे बा'द नहीं है कोई
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मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
शरीक वो भी रहा काविश-ए-मोहब्बत में
मैं जिस को सोचता रहता हूँ क्या है वो आख़िर
सहरा कोई बस्ती कोई दरिया है कि तुम हो
दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
हमारे काँधे पे इस बार सिर्फ़ आँखें हैं
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
तेरे होने से भी अब कुछ नहीं होने वाला
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश