पानियों में खेल कुछ ऐसा भी होना चाहिए था
बीच दरिया में कोई कश्ती डुबोना चाहिए था
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आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
तुम थे तो हर इक दर्द तुम्हीं से था इबारत
वो भी न आया उम्र-ए-गुज़िश्ता के मिस्ल ही
शरीक वो भी रहा काविश-ए-मोहब्बत में
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ को दरमियाँ कर के
तमाम उम्र ब-क़ैद-ए-सफ़र रहा हूँ मैं
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में