न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
मगर अभी मिरे ग़म का हिसाब का बाक़ी है
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बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं
पैरों से बाँध लेता हूँ पिछली मसाफ़तें
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
नज़्म
उस से कह दो कि मुझे उस से नहीं मिलना है
तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
रौनक़-ए-बज़्म नहीं था कोई तुझ से पहले
मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
मैं जिस को सोचता रहता हूँ क्या है वो आख़िर