न चाँद का न सितारों न आफ़्ताब का है
सवाल अब के मिरी जाँ तिरे जवाब का है
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(442) Peoples Rate This
सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई
उस से कह दो कि मुझे उस से नहीं मिलना है
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
सुनते हैं बयाबाँ भी कभी शहर रहा था
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
वो चेहरा मुझे साफ़ दिखाई नहीं देता
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती