मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
मिरे अंदर तो कोई और पैदा होने वाला है
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मैं तो अब शहर में हूँ और कोई रात गए
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
हर लम्हे मैं सदियों का अफ़्साना होता है
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
मैं अपने-आप से आगे निकल गया हूँ बहुत
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद
ये काएनात भी क्या क़ैद-ख़ाना है कोई
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
ताबिश-ए-गेसू-ए-ख़मदार लिए फिरता है
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती