मैं अपने-आप से आगे निकल गया हूँ बहुत
किसी सफ़र के हवाले ये जिस्म-ओ-जाँ कर के
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(409) Peoples Rate This
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
तुम थे तो हर इक दर्द तुम्हीं से था इबारत
इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
हर लम्हे मैं सदियों का अफ़्साना होता है
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही
रौनक़-ए-बज़्म नहीं था कोई तुझ से पहले
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद
उसी के ख़्वाब थे सारे उसी को सौंप दिए
ज़ीस्त की यकसानियत से तंग आ जाते हैं सब