जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
तो फिर तुम ही बताओ आज क्या क्या होने वाला है
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अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
न चाँद का न सितारों न आफ़्ताब का है
तमाम उम्र ब-क़ैद-ए-सफ़र रहा हूँ मैं
मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
मैं अपने-आप से आगे निकल गया हूँ बहुत