इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
वो ख़ुदा है तो गुनहगार नहीं हूँ मैं भी
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बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
रौनक़-ए-बज़्म नहीं था कोई तुझ से पहले
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
उस से कह दो कि मुझे उस से नहीं मिलना है
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
वो भी न आया उम्र-ए-गुज़िश्ता के मिस्ल ही
तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं