होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही
जब कि हम भूल गए ख़ुद को वो तब याद आया
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मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं
उसी के ख़्वाब थे सारे उसी को सौंप दिए
ताबिश-ए-गेसू-ए-ख़मदार लिए फिरता है
सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
शरीक वो भी रहा काविश-ए-मोहब्बत में
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
ज़ीस्त की यकसानियत से तंग आ जाते हैं सब