एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
उस के बख़्शे हुए लम्हों पे बसर करते हुए
Javed Akhtar
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Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
सुनते हैं बयाबाँ भी कभी शहर रहा था
इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
ज़ीस्त की यकसानियत से तंग आ जाते हैं सब
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
हमारे काँधे पे इस बार सिर्फ़ आँखें हैं
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ