दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
इस ख़राबे में अब आबाद नहीं है कोई
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सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
ताबिश-ए-गेसू-ए-ख़मदार लिए फिरता है
सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर
अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ को दरमियाँ कर के
सुनते हैं बयाबाँ भी कभी शहर रहा था
एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर