बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं
हम किसी काम के रहे ही नहीं
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सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
ताबिश-ए-गेसू-ए-ख़मदार लिए फिरता है
एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई