अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
अब मुझ में कोई बात पुरानी भी नहीं है
Allama Iqbal
Habib Jalib
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Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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वो भी न आया उम्र-ए-गुज़िश्ता के मिस्ल ही
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
वो चेहरा मुझे साफ़ दिखाई नहीं देता
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
तुम थे तो हर इक दर्द तुम्हीं से था इबारत
मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
हमारे काँधे पे इस बार सिर्फ़ आँखें हैं
होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही
ताबिश-ए-गेसू-ए-ख़मदार लिए फिरता है
तेरे होने से भी अब कुछ नहीं होने वाला