आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
तुम भूल गए हो तो किसे ध्यान रहेगा
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मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
नज़्म
न चाँद का न सितारों न आफ़्ताब का है
वो चेहरा मुझे साफ़ दिखाई नहीं देता
हर लम्हे मैं सदियों का अफ़्साना होता है
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
शरीक वो भी रहा काविश-ए-मोहब्बत में
उस से कह दो कि मुझे उस से नहीं मिलना है
हमारे काँधे पे इस बार सिर्फ़ आँखें हैं
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद