आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
मुझ से मिलती ही नहीं शक्ल-ओ-शबाहत मेरी
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मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
नज़्म
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
तेरे होने से भी अब कुछ नहीं होने वाला
वो चेहरा मुझे साफ़ दिखाई नहीं देता
इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद
सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर
हम किसी और वक़्त के हैं असीर