तेरे होने से भी अब कुछ नहीं होने वाला
मुझ में बाक़ी ही नहीं है कोई रोने वाला
उस से मिलता हूँ तो लगता है कि मेरे अंदर
नींद से जाग गया है कोई सोने वाला
मुझ को इस खेल के आदाब सभी हैं मालूम
मैं तो इस खेल में शामिल नहीं होने वाला
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सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
मैं अपने-आप से आगे निकल गया हूँ बहुत
आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई
न चाँद का न सितारों न आफ़्ताब का है
शरीक वो भी रहा काविश-ए-मोहब्बत में
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
हर लम्हे मैं सदियों का अफ़्साना होता है
होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही