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अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं - सरफ़राज़ ख़ालिद कविता - Darsaal

अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं

अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं

अब किसी साँचे में ढलना ही नहीं चाहता मैं

तुम अगर मुझ से मोहब्बत नहीं करते न सही

ऐसी बातों से बहलना ही नहीं चाहता मैं

या मिरे पाँव में क़ुव्वत ही नहीं है इतनी

या तिरी राह पे चलना ही नहीं चाहता मैं

सुनता रहता हूँ सदाएँ तिरी दस्तक की मगर

अपने कमरे से निकलना ही नहीं चाहता मैं

ये भी सच है कि सँभलना है ज़रूरी मेरा

ये भी सच है कि सँभलना ही नहीं चाहता मैं

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In Hindi By Famous Poet Sarfraz Khalid. is written by Sarfraz Khalid. Complete Poem in Hindi by Sarfraz Khalid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.