हम अपने जलते हुए घर को कैसे रो लेते
हमारे चारों तरफ़ एक ही नज़ारा था
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(463) Peoples Rate This
आरज़ूओं की रुतें बदले ज़माने हो गए
इस से पहले कि सर उतर जाएँ
रात की सरहद यक़ीनन आ गई
शहर भर के आईनों पर ख़ाक डाली जाएगी
तिलिस्म तोड़ दिया इक शरीर बच्चे ने
ग़म का सूरज तो डूबता ही नहीं
हमारा शेर भी लौह-ए-तिलिस्म है शायद
चंद लम्हे को तू ख़्वाबों में भी आ कर झाँक ले
सफ़ीना मौज-ए-बला के लिए इशारा था
लम्हा लम्हा तजरबा होने लगा