हमारा शेर भी लौह-ए-तिलिस्म है शायद
हर एक रुख़ से हमें बे-नक़ाब करता है
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(445) Peoples Rate This
तिलिस्म तोड़ दिया इक शरीर बच्चे ने
आरज़ूओं की रुतें बदले ज़माने हो गए
ग़म का सूरज तो डूबता ही नहीं
लम्हा लम्हा तजरबा होने लगा
शहर भर के आईनों पर ख़ाक डाली जाएगी
सफ़ीना मौज-ए-बला के लिए इशारा था
इस से पहले कि सर उतर जाएँ
चंद लम्हे को तू ख़्वाबों में भी आ कर झाँक ले
रात की सरहद यक़ीनन आ गई
हम अपने जलते हुए घर को कैसे रो लेते