लबों में आ के क़ुल्फ़ी हो गए अशआर सर्दी में
ग़ज़ल कहना भी अब तो हो गया दुश्वार सर्दी में
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राज़-ओ-नियाज़ में भी अकड़-फ़ूँ नहीं गई
सेंट की कजले की और ग़ाज़े की गुल-कारी के ब'अद
कोई ख़ुश-ज़ौक़ ही 'शाहिद' ये नुक्ता जान सकता है
ऐसे लगे है नौकरी माल-ए-हराम के बग़ैर
मुर्ग़ पर फ़ौरन झपट दावत में वर्ना ब'अद में
स्पैशलिस्ट पेन-किलर दे तो कौन सा?
ख़बर है मेरी रुस्वाई की
वही मक़्बूल लीडर और डिप्लोमैट होता है
इश्क़ में कुछ इस सबब से भी है आसानी मुझे
क्रिकेटर से मुकालिमा
कुछ लोग रब्त-ए-ख़ास से आगे निकल गए
शादी के जो अफ़्साने हैं रंगीन बहुत हैं