कोई ख़ुश-ज़ौक़ ही 'शाहिद' ये नुक्ता जान सकता है
कि मेरे शेर और नख़रे तुम्हारे एक जैसे हैं
Faiz Ahmad Faiz
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इस दौर के मर्दों की जो की शक्ल-शुमारी
क़ाबिज़ रहा है दिल पे जो सुल्तान की तरह
क्रिकेटर से मुकालिमा
चेहरे चाँद सितारों वाले हेरा-फेरी करते हैं
लबों में आ के क़ुल्फ़ी हो गए अशआर सर्दी में
गिरानी का असर
ईद पर मसरूर हैं दोनों मियाँ बीवी बहुत
माडर्न हीरें तो ज़र-दारों के हाँ रह जाएँगी
नहले पे दहला
दफ़्तर-ए-शादी का मुन्तज़िम
बढ़ती रही हर साल जो तादाद हमारी
वही मक़्बूल लीडर और डिप्लोमैट होता है