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सेंट की कजले की और ग़ाज़े की गुल-कारी के ब'अद - सरफ़राज़ शाहिद कविता - Darsaal

सेंट की कजले की और ग़ाज़े की गुल-कारी के ब'अद

सेंट की कजले की और ग़ाज़े की गुल-कारी के ब'अद

वो हसीं लगती है लेकिन कितनी तय्यारी के ब'अद

मुद्दतों के ब'अद उस को देख कर ऐसा लगा

जैसे रोज़ा-दार की हालत हो अफ़तारी के ब'अद

बाँध कर सहरा नज़र आए है यूँ नौशा-मियाँ

जिस तरह मुजरिम दिखाई दे गिरफ़्तारी के ब'अद

हीरोइन पचपन बरस की हो चुकीं तो ग़म नहीं

अब गुलू-कारी करेंगी वो अदाकारी के ब'अद

क़ौम को बेदार कर डिस्को-म्यूज़िक छेड़ कर

जो बिचारी सो चुकी है राग-दरबारी के ब'अद

ईद पर मसरूर हैं दोनों मियाँ बीवी बहुत

इक ख़रीदारी से पहले इक ख़रीदारी के ब'अद

अक़्द-ए-सानी का मज़ा पूछा तो बोले शैख़-जी

ऐसे लगता है चिकन चक्खा है तरकारी के ब'अद

राह-ए-उल्फ़त की ट्रैफ़िक हो कि मोटर-वे की हो

हादसे होते हैं 'शाहिद' तेज़-रफ़्तारी के ब'अद

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In Hindi By Famous Poet Sarfaraz Shahid. is written by Sarfaraz Shahid. Complete Poem in Hindi by Sarfaraz Shahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.