लबों में आ के क़ुल्फ़ी हो गए अशआर सर्दी में
लबों में आ के क़ुल्फ़ी हो गए अशआर सर्दी में
ग़ज़ल कहना भी अब तो हो गया दुश्वार सर्दी में
मोहल्ले भर के बच्चों ने ढकेला सुब्ह-दम उस को
मगर होती नहीं स्टार्ट अपनी कार सर्दी में
मई और जून की गर्मी में जो दिलबर को लिक्खा था
उसी ख़त का जवाब आया है आख़िर-कार सर्दी में
दवा दे दे के खाँसी और नज़ले की मरीज़ों को
मुआलिज ख़ुद बिचारे पड़ गए बीमार सर्दी में
कई अहल-ए-नज़र इस को भी डिस्को की अदा समझे
बिचारा कपकपाया जब कोई फ़नकार सर्दी में
यही तो चोरियों और वारदातों का ज़माना है
कि बैठे तापते हैं आग पहरे-दार सर्दी में
लहू को इस तरह अब गर्म रखता है मिरा 'शाहिद'
कभी चाय कभी सिगरेट कभी निस्वार सर्दी में
(737) Peoples Rate This