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टूट के पत्थर गिरते रहते हैं दिन रात चटानों से - सरफ़राज़ आमिर कविता - Darsaal

टूट के पत्थर गिरते रहते हैं दिन रात चटानों से

टूट के पत्थर गिरते रहते हैं दिन रात चटानों से

सावन की बरसात की सूरत बरसें तीर कमानों से

काले कोसों दूर से आख़िर लाए भी तो फुल-झड़ियाँ

हीरे भी तो मिल सके थे सोच की गहरी कानों से

इस रंगीं बाज़ार में कोई क्या ख़ुश्बू का ध्यान करे

फूलों को माली भी परखे रंगों के पैमानों से

रात सहर की खोज में कितने दीप जला कर निकले थे

कितने तारे लौट के आए हैं काले वीरानों से

तपती धूप में कब से मूरख आस लगाए बैठा है

चश्मे फूट के ब निकलेंगे रेतीले मैदानों से

बीती ख़ुशियाँ भी अब ध्यान में आने से कतराती हैं

रात को लोग गुज़रते हैं हट कर वीरान मकानों से

'आमिर' कैसा दिन गुज़रा है और ये कैसी शाम हुई

पहरों ख़ून टपकते देखा सूरज की शिरयानों से

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In Hindi By Famous Poet Sarfaraz Amir. is written by Sarfaraz Amir. Complete Poem in Hindi by Sarfaraz Amir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.