उसी का जल्वा-ए-ज़ेबा है चाँदनी क्या है
उसी का जल्वा-ए-ज़ेबा है चाँदनी क्या है
ये चाँद क्या है ये सूरज की रौशनी क्या है
उसी के हुस्न पे देता है जान परवाना
नहीं तो शम् के शो'लों में दिलकशी क्या है
कहाँ का वस्ल कहाँ का फ़िराक़ किस का गिला
वजूद एक ही ठहरा तो फिर दुई क्या है
किसी पे राज़-ए-हक़ीक़त खुले तू ख़ाक खुले
जब आदमी नहीं वाक़िफ़ कि आदमी क्या है
जबीन-ए-शौक़ है और उन का आस्ताना है
जो बंदगी ये नहीं है तो बंदगी क्या है
ज़बान ओ दिल के तअ'ल्लुक़ का भी लिहाज़ रहे
'सरीर' दिल को न छू ले वो शाइ'री क्या है
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