तश्कील बदर की है कभी है हिलाल की
तश्कील बदर की है कभी है हिलाल की
दुनिया है इक शबीह उरूज-ओ-ज़वाल की
फूलों से है लदी हुई हर शाख़-ए-गुल्सिताँ
रख ली ख़ुदा ने आबरू दस्त-ए-ज़वाल की
जन्नत-फ़रोश हूरों के दल्लाल ख़िर्क़ा-पोश
क्या पूछते हो वाइ'ज़-ए-फ़र्ख़न्दा-फ़ाल की
इन मह-वशों को पर्दे से बाहर निकाल के
दुनिया मिटाई जाती है हुस्न-ओ-जमाल की
मुझ को मिला है वो दिल बे-मुद्दआ 'सरीर'
जिस को ग़म-ए-फ़िराक़ न हसरत विसाल की
(682) Peoples Rate This